भाफिटेसं के बारे में

संक्षिप्त इततहास

भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान (भाफिटेसं) की स्थापना भारत सरकार द्वारा सन्1960 मेंपणु ेस्स्थत पवूवव ती प्रभात स्टूडियो के पररसर में की गई।

भाफिटेसं कैम्पस वतमव ान मेंपवूवव ती प्रभात स्टूडियो की भमूम पर अवस्स्थत है। प्रभात स्टूडियो फ़िल्म ननमावण के व्यवसाय में अग्रणी था और उसे सन्1933 में कोल्हापरु से पणु े स्थानांतररत कर दिया गया था। अपने समय के सबसे परुाने स्टूडियो, जो कभी प्रभात की फ़िल्मों के ननमावण स्थल थे, वेआज भी मौजिू हैंऔर भाफिटेसं में उनका उपयोग ककया जा रहा है। प्रभात के परुाने स्टूडियो अब ववरासती सरं चना बन गए हैंतथा भाफिटेसं के ववद्याथीगण ववश्व के सबसे परुाने कायरव त फ़िल्म शदूटगं स्टूडियो में कायव कर रहे हैं।

प्रभात स्टूडियो की विरासत

वतवमान भाफिटेसं कै म्पस प्रारस्म्भक िौर में प्रभात फ़िल्म कम्पनी द्वारा वर्व 1933 मेंखरीिा गया एक भखू ंि था। इस कम्पनी की स्थापना सन्1929 में कोल्हापरु में की गई थी और 4 वर्व पश्चात्इसे पणु े स्थानांतररत कर दिया गया था। अपनेसमय की उत्कृष्ट एवं अग्रणी फ़िलम् कम्पनी के रूप मेंइसनेकई महत्वपूणवएवं प्रनतस्ष्ित फ़िल्मों जैसे शेजारी, संत ज्ञानेश्वर एवं सैरन्ध्री, जो कक प्रभात द्वारा ननममवत एकमात्र रंगीन फ़िल्म थी, का ननमावण ककया। इस प्रनतस्ष्ित स्टूडियो की ऐसी ववरासत थी कक एक समय में यह एमशया का सबसे बडा फ़िल्म स्टूडियो था। अपने जमाने में प्रभात फ़िल्म कम्पनी ने 45 फ़िल्मों का ननमावण ककया था, स्जसमें मरािी एवं दहंिी िोनों भार्ा की फ़िल्मेेें शाममल हैं।

भाफिटेसं की स्थापना

भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान (भाफिटेसं) की स्थापना वर्व 1960 में की गई थी और पहले इसे 'भारतीय फ़िल्म संस्थान' के नाम से जाना जाता था। यह भारत सरकार के सचू ना एवं प्रसारण मत्रं ालय का ववभाग था।

सन्1971 में, इसका नामकरण 'भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान' (भाफिटेसं) ककया गया। इसे भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान के नाम से भी जाना जाता है। इसने जल्ि ही भारत के सावजव ननक प्रसारक िरूिशनव के मलए प्रमशक्षण कायवक्रमों की सेवा प्रारम्भ कर िी। पहले जो टेलीविज़न प्रशिक्षण स्कं ध नई दिल्ली से कायव कर रहा था, उसे सन्1974 में पणु ेमें स्थानांतररत कर दिया गया। इसके पश्चात्यह सस्ं थान पणू व रूप सेसचू ना एवं प्रसारण मत्रं ालय द्वारा सहायतायक्ुत बन गया।

अपने नाम में पररवतवन के साथ ही, भाफिटेसं सचू ना एवं प्रसारण मत्रं ालय के तहत एक स्वायत्तशासी सोसाइटी बन गया, जो कक शासी पररर्ि (गवननगिं काउंमसल) और इसके ननयक्ुत ननिेशक द्वारा संचाशलत है।

िततमान में भाफिटेस

आज दुनियाभर में भाफिटेसं को ऑडिओ-विजुअल मीडिया के उत्कर्ष केंद्र के रूप में जाना जाता है और यह भारत के सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म संस्थानों में से एक है। हमारे भूतपूर्व छात्र अनेक स्थानों जैसे लॉस ऐंजिलिस, पेरिस एवं लंदन से मुम्बई, हैदराबाद, त्रिवेन्द्रम, चेन्नई एवं कोलकाता तक कार्यरत हैं। उन्होंने प्रतिष्ठित टेक्निशियन एवं सुपरस्टार के रूप में लोकप्रियता एवं प्रतिष्ठा हासिल की है। पूर्व छात्रों ने 'राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार' से 'ऑस्कर्स', से लगाए 'दादा साहब फाल्के अवार्ड' से लेकर प्रतिष्ठित 'पद्मा अवार्ड' जैसे लोकप्रिय फ़िल्म एवं टेलीविज़न पुरस्कार प्राप्त किये हैं।

भाफिटेसं अपने मूल पांच पाठ्यक्रमों से प्रगति करते हुए फ़िल्म एवं टेलीविज़न के विभिन्न विषयों में ग्यारह पूर्णकालीन पाठ्यक्रमों सहित अल्पावधि पाठ्यक्रमों को भी प्रदान कर रहा है। ये पाठ्यक्रम पुणे स्थित कैम्पस के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत में फैले केंद्रों के कैम्पस के बाहर में भी पढ़ाये जाते हैं।

भाफिटेसं में महत्वपूर्ण स्थान

शांताराम पॉण्ड

शांताराम पॉण्ड एक तालाबनुमा संरचना है, जिसे प्रभात फ़िल्म कम्पनी द्वारा विभिन्न दृश्यों को दर्शाने की सुविधा के लिए निर्मित कराया गया था। हालांकि, यह अक्सर खाली रहता है, पानी को उस वाल्व जैसे यंत्र के जरिए भरा जा सकता है, जिसे उक्त टैंक में स्थापित किया गया है। पूरा वातावरण शांत एवं सुन्दर है, जो कि सचमुच में अवर्णनीय है। इस पर विश्वास करने के लिए इसे देखना पड़ेगा। इस पॉन्ड का नामकरण ऐतिहासिक फ़िल्म निर्देशक वी. शांताराम के नाम पर किया गया, जो कभी यहां घंटों बैठते और घूमते थे।

विजडम ट्री

भाफिटेसं कैम्पस के भीतर अवस्थित विजडम ट्री में एक कल्पित गुण है। यह एक ऐसा स्थान है जहां सभी छात्र बिना किसी प्रोटोकॉल या उद्देश्य के खींचे चले आते हैं। कहा जाता है कि अपने समय के कई महान फ़िल्म निर्माताओं और कलाकारों ने इस वृक्ष के नीचे ज्ञान एवं जीवन की शिक्षायें प्रदान की हैं। पिछले कुछ वर्षों में ही यह वार्तालाप, संगीत, बौद्धिक चर्चा एवं समागम स्थल बन गया है और यह अभी भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

विस्मृत गुम्बज

भाफिटेसं कैम्पस की झाड़ियों एवं पत्तियों के बीच एक गुम्बज है। संस्थान में प्रतिदिन आने-जानेवाले अनेक छात्रों एवं संकाय सदस्यों की स्मृति से यह गुम्बज ओझल गया था। वास्तव में यह गुम्बज पूर्ण रूप से कार्यात्मक गुंजायमान केंद्र है, जिसे सन् 1932-1933 में प्रभात फ़िल्म कम्पनी द्वारा निर्मित कराया गया था। एक कर्मचारी के संशोधन ने इसकी सच्चाई पर प्रकाश डाला है कि इस चैम्बर का उपयोग विष्णुपंत गोविंद दामले द्वारा निर्देशित फ़िल्म संत ज्ञानेश्वर (1940) में किया गया था।

प्रभात म्यूजियम

प्रभात म्यूजियम की स्थापना सन् 1995 में की गई थी। इसमें प्रभात फ़िल्म कम्पनी द्वारा संस्थान को दी गई प्राचीन कलाकृतियों एवं तस्वीरें शामिल हैं। इसमें प्राचीन आभूषण, रंग-मंच की सामग्रियां, तस्वीरें और उस युग के सितारों द्वारा पहने जानेवाले परिधानों को प्रदर्शित किया गया है। इस म्यूजियम को देखना इतिहास के पन्नों को पलटने जैसा है।

 

© 2024 FTII, Pune
Web Information manager
Shri. Yogesh Sonawane
Content Owned and Managed by Film and Television Institute of India, Pune
Design & Developed by Cygnus Advertising
Last Updated: 27, Mar 2019